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बैंक से ऋण लेनेवाले को सुप्रीम कोर्ट का झटका, आप लाभार्थी है

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक अहम फैसले में कहा है कि जिन संस्थाओं ने लाभ कमाने के लिए बैंकों से बिजनेस लोन लिया है, वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत एक ‘उपभोक्ता’ के रूप में बैंक के खिलाफ उपभोक्ता फोरम का दरवाजा नहीं खटखटा सकते। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया बनाम एड ब्यूरो एडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड के विवाद की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि बैंक से बिजनेस लोन लेने वाले संस्थान उपभोक्ता नहीं बल्कि लाभार्थी कहलाएंगे और वो उपभोक्ता नहीं कहला सकते। इसलिए ऐसे संस्थान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत कंज्यूमर फोरम नहीं जा सकते।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा, “हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इस मामले में प्रतिवादी एड ब्यूरो एडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड को ‘उपभोक्ता’ नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि उसने बैंक से प्रोजेक्ट लोन लेकर लाभ हासिल किया है और उसकी गतिविधियां इस लेन-देन में लाभ कमाने वाली रही हैं।” कोर्ट ने कहा कि वास्तविकता में, इस प्रोजेक्ट लोन के जरिए कंपनी का उद्देश्य ‘कोचादइयां’ फिल्म के सफल पोस्ट-प्रोडक्शन पर लाभ कमाना था।

दरअसल, 2014 में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने एड ब्यूरो एडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड को 10 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट लोन दिया था। यह लोन मशहूर अभिनेता रजनीकांत के अभिनय वाली फिल्म ‘कोचादइयां’ के पोस्ट-प्रोडक्शन के लिए था, जिसके बदले एक संपत्ति को गिरवी रखा गया था। बाद में कंपनी समय पर लोन नहीं चुका सकी। इस वजह से बैंक ने 2015 में कंपनी के लोन खाते को NPA घोषित कर दिया। बाद में बैंक ने वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा हित के प्रवर्तन (SARFAESI) अधिनियम और बैंकों और वित्तीय संस्थानों को बकाया ऋण वसूली (RDDBFI) अधिनियम के तहत वसूली की कार्यवाही शुरू की और अंततः कंपनी के साथ 3.56 करोड़ रुपये का एकमुश्त समझौता हो गया।

इस समझौते के बावजूद, बैंक ने क्रेडिट इंफॉर्मेशन ब्यूरो ऑफ इंडिया लिमिटेड (CIBIL) को मेसर्स एड ब्यूरो को गलत तरीके से डिफॉल्टर के रूप में रिपोर्ट कर दिया, जिससे कंपनी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा और वित्तीय नुकसान भी हुआ। इस वजह से कंपनी को भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के साथ एक विज्ञापन निविदा का नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि कंपनी डिफॉल्टर होने की वजह से बैंक गारंटी पेश नहीं कर सकी।