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जहाँ भक्ति और फ़िल्मी गीतों पर प्रस्तुति के साथ भगत सिंह के प्ले ने समां बांधा, वहीं अंधेरे मंच बैकड्रॉप से रोशनी और विट्ठल को साक्षात मंच पर देख मंत्रमुग्ध हुए दर्शक

रायपुर। महाराष्ट्र मंडल के संत ज्ञानेश्वर सभागृह में 27 सितम्बर की शाम भक्ति, फिल्मीगीतों में बच्चों से लेकर बड़ों ने मनमोहक प्रस्तुति दी। महाराष्ट्र मंडल की कला एवं संस्कृति समिति की ओर से आयोजित इस सांस्कृतिक संध्या के खुले मंच में जब दो साल के पार्थ ओझा और चार साल के कियांश साल्वे ने अपनी प्रस्तुति दी तो दर्शको ने उत्साह में खूब तालियां बजायी।

महाभारत पर आधारित संगीतमयी प्रस्तुति ने सभी का दिल जीत लिया। बच्चों के इन प्रस्तुति के साथ शहीद भगत सिंह आधारित प्ले ने कार्यक्रम में समां बांधा। मंडल के आजीवन सभासद रंजन मोडक के निर्देशन में भगत सिंह की याद में जालियां वाला बाग पर कलाकार आयुष राजवैद्य ने प्ले किया। जिसमें संगीत तिलक भोगल ने दिया। मंच के साइड से आयुष की एंट्री और तिलक के गिटार एवं संगीत ने दर्शको में उत्साह भर दिया। आयुष के इस प्ले ने दर्शको का खूब दिल मोंह लिया। महाराष्ट्र मंडल के कला एवं संस्कृति समिति प्रभारी भारती पलसोदकर ने बताया कि कार्यक्रम में 28 बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का शुभारंभ मंडल के अध्यक्ष अजय काले, गणेशोत्सव प्रभारी दीपक किरइवाले, नमिता शेष, सुकृत गनोदवाले ने दीप प्रज्जवलन के साथ किया। कार्यक्रम का संचालन मंडल कि महिला प्रमुख विशाखा तोपख़ानेवाले ने किया।
वहीं रविवार 24 सितम्बर की रात हुए विट्ठल तो lआला-आला नाटक मंचन ने भक्तिमय कर दिया पूरा माहौल। अंधेरे मंच, बैकड्रॉप से रोशनी और भग्वान विट्ठल की मनमोहक आकृति देखकर सभागृह में बैठे दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।

विट्ठल तो आला-आला का यह पहला दृश्य जितना आकर्षक था पूरा नाटक उतना ही मनोरंजक था। पु. ल. देशपांडे लिखित सुप्रसिद्ध एकांकिका ‘विट्ठल तोआला-आला’ मंचित 12 पात्रीय इस नाटक में निश्चित ही विट्ठल की भूमिका में भगीरथ कालेले अपनी वेशभूषा, रंगभूषा और संवाद अदायगी से छाए रहे। उनका साथ प्रसन्न निमोणकर (सेठजी), चेतन दंडवते (पंडितजी), प्रियाबक्षी (वकील), सुधांशु नाफड़े (पशु चिकित्सक), अभिषेक बक्शी (मास्टर), प्रेम उपवंशी (दर्जी), कीर्ति हिशीकर (गायिका), पवन ओगले (अन्धा भिखारी) ने बखूबी दिया।
भग्वान विट्ठल हर पात्र से काम मांगते या अपना स्वयं का स्थान देकर स्वयं उनकी जगह काम करने का प्रस्ताव देते दिखे। इस प्रस्ताव को सभी ने सौम्यता के अपने-अपने तर्कों से ठुकरा दिया। इस बीच नाटक को एक अलग ही रंग देने के लिए अचानक नवीन देशमुख (फिल्म डायरेक्टर ), रविंद्र ठेंगड़ी (म्यूजिक डायरेक्टर) मंच पर आते है और हास-परिहास का नया दौर शुरू हो जाता है। 50 मिनट के इस मंचन में निर्देशक प्रा. अनिल श्रीराम कालेले दर्शको को समाज के सशक्त सन्देश देने में सफल रहे। अपनी निर्देशकीय दक्षता से कालेले ने करीब 75 साल पुराने इस नाटक की सामायिकता को नयी ताजगी दी। इस नाटक में कला संयोजन अजय पोतदार, वेशभूषा अर्पणा कालेले, मेकअप वंदना निमोणकर और पार्श्व संगीत परितोष डोनगांवकर ने दिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अरुण भावे और वनजा भावे ने दोनों के भूरी -भूरी प्रशंसा करते हुए अतिशीघ्र तीन अंकीय नाटक की योजना बनाने का आग्रह किया। मंडल के अध्यक्ष अजय काले ने नए भवन में संत ज्ञानेश्वर सभागृह के सौ. कुमुदिनी वरवंडकर मंच पर सफलतापूर्वक मंचित किये गए नाटकों के लिए पूरी टीम का अभिवादन किया।