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शासकीय अस्पतालों में 10 साल के अनुभव वाले विशेषज्ञ अब बन सकेंगे एसोसिएट प्रोफेसर, शिक्षकों की कमी दूर करने एनएमसी ने बदले नियम

एनएमसी ने मेडिकल फैकल्टी नियमों में बदलाव करते हुए 10 वर्ष के अनुभव वाले विशेषज्ञों को एसोसिएट प्रोफेसर और 2 वर्ष के अनुभव वाले डॉक्टरों को सहायक प्रोफेसर बनने की पात्रता दी है। 

नई दिल्ली। राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (NMC) ने हाल ही में मेडिकल संकाय नियमों में संशोधन करते हुए 2025 के नए फैकल्टी नियम अधिसूचित किए हैं। इन नए नियमों के अनुसार, अब 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले गैर-शिक्षण विशेषज्ञ/परामर्शदाता सरकारी अस्पतालों में एसोसिएट प्रोफेसर पद के लिए पात्र होंगे, जबकि 2 वर्षों का अनुभव रखने वाले डॉक्टर सीनियर रेजिडेंसी के बिना भी सहायक प्रोफेसर बन सकते हैं।

किसे मिलेगा लाभ?

एनएमसी द्वारा जारी “मेडिकल इंस्टीट्यूशन (फैकल्टी क्वालिफिकेशन) रेगुलेशंस 2025” के अनुसार 220 बेड या उससे अधिक वाले सरकारी अस्पतालों में कार्यरत पीजी डिग्रीधारी डॉक्टर, जिनके पास कम से कम 2 वर्षों का अनुभव है, वे सीनियर रेजिडेंसी के बिना सहायक प्रोफेसर पद के लिए पात्र होंगे। ऐसे उम्मीदवारों को नियुक्ति के 2 वर्षों के भीतर जैव चिकित्सा अनुसंधान में बुनियादी पाठ्यक्रम पूरा करना होगा।

विशेषज्ञ डॉक्टरों के लिए प्रमोशन का अवसर

सरकारी अस्पतालों या NBEMS मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेजों में तीन साल तक टीचिंग का अनुभव रखने वाले वरिष्ठ सलाहकार अब प्रोफेसर पद के लिए पात्र माने जाएंगे। वही डिप्लोमा होल्डर जो 6 वर्षों तक विशेषज्ञ/मेडिकल ऑफिसर के तौर पर कार्यरत हैं, वे भी अब सहायक प्रोफेसर बन सकेंगे।

पात्र संकाय सदस्यों की संख्या बढ़ाना उद्देश्य 

आयोग ने कहा कि एनएमसी के तहत पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड (पीजीएमईबी) की तरफ से लाए गए इन नियमों का उद्देश्य पात्र संकाय सदस्यों की संख्या बढ़ाना और पूरे भारत में मेडिकल कॉलेजों में स्नातक (एमबीबीएस) और स्नातकोत्तर (एमडी/एमएस) सीटों के विस्तार की सुविधा प्रदान करना है। नए नियम सरकारी स्वास्थ्य प्रणालियों के अंदर मौजूदा मानव संसाधन क्षमता बढ़ाने और चिकित्सा शिक्षा के बुनियादी ढांचे को अनुकूलित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

PG पाठ्यक्रम शुरू करने के नियम भी बदले

अब किसी भी PG मेडिकल कोर्स को केवल 2 संकाय सदस्यों और 2 सीटों के साथ शुरू किया जा सकता है। पहले इसके लिए 3 संकाय और एक सीनियर रेजिडेंट जरूरी होता था। यूजी और पीजी कोर्स अब एक साथ शुरू किए जा सकेंगे, जिससे मेडिकल पेशेवरों की संख्या बढ़ाई जा सकेगी।

एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, पैथोलॉजी, फार्माकोलॉजी, फोरेंसिक मेडिसिन जैसे विषयों में सीनियर रेजिडेंट बनने की अधिकतम आयु अब 50 वर्ष कर दी गई है।

स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में बदलावों को देखते हुए उठाया गया कदम

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली तेजी से बदलाव के दौर से गुजर रही है। केंद्र सरकार ने अगले पांच वर्षों में 75,000 नई मेडिकल सीटें सृजित करने की योजना की घोषणा की है। हालांकि, इस विस्तार की राह में सबसे बड़ी चुनौती योग्य शिक्षकों और फैकल्टी सदस्यों की उपलब्धता रही है। आयोग का मानना है कि मेडिकल प्रोग्राम शुरू करने या उन्हें विस्तार देने के लिए पर्याप्त योग्य संकाय होना अनिवार्य है। इसी जरूरत को समझते हुए राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (NMC) ने यह सुधारात्मक कदम उठाया है, जिससे देश भर में मेडिकल शिक्षा के ढांचे को मजबूत किया जा सके।

220 बेड वाले अस्पताल भी बन सकेंगे शिक्षण संस्थान

नए नियमों में यह भी कहा गया है कि 220 से ज्यादा बेड वाले गैर-शिक्षण सरकारी अस्पतालों को भी अब मेडिकल टीचिंग इंस्टीट्यूशन के रूप में नामित किया जा सकता है। यह बदलाव उन पुराने नियमों की तुलना में बड़ा सुधार है, जिनमें 330 बेड की आवश्यकता होती थी।